बात उन दिनों की हैं जब मैं 11 -12 साल की थी। गर्मी की छुटियों में हर साल हम मामा के घर जाते थे। मगर उस साल, ना मामा को फुरसत मिल रही थी कि -वो आकर हमें ले जाएं , ना ही पापा को फुरसत थी कि- वो हमें मामा के घर छोड़ आए। हम भाई बहन पापा से ज़िद करने लगे कि- वो हमें बस में बैठा दे, हम चले जायेगे।मामा के घर के करीब ही बस स्टेण्ड था सो, घर तक अकेले जाना कोई मुश्किल नहीं था। हमारे बहुत ज़िद करने पर पापा हम चारों भाई -बहन को बस में बैठा दिए ,मुश्किल से एक घंटे का रास्ता भी नहीं था और बस के ड्राइवर और कंडक्टर मामा को जानते थे सो पापा आश्वस्त थे कि बच्चे सही सलामत पहुँच ही जाएंगे। पापा ने ताकीद की कि -वहाँ पहुँचकर मामा को बोलना किसी के हाथ कल एक चिट्ठी भेज दे कि तुम लोग सही सलामत पहुँच गए हो।उस ज़माने में मोबाईल तो था नहीं।
पापा की सारी बातों को गाँठ बांधकर कर हम चारो निकल पड़े " मामा के घर के सफर " पर। सबसे बड़े भईया 15 साल के मैं 12 साल की ,मेरी छोटी बहन 9 साल की और सबसे छोटा भाई जिसे हम साथ ले जाना तो नहीं चाहते थे पर वो भी रो- धोकर साथ हो चला था 7 साल का। घर से निकलते वक़्त तो लगा था बस एक घंटे में हम मामा के घर होंगे कोई फ़िक्र की बात ही नहीं हैं ,मगर किसे पता था- अगले पल क्या होने वाला हैं ?
मामा के घर से करीब 5 -6 किलोमीटर पहले ही बस खराब हो गई और पता चला अब वो बस आगे नहीं जायेगी और ना ही वहाँ से कोई दूसरी बस ही जायेगी । ड्राइवर ने हमसे कहा कि-बच्चों, तुम सब यही बैठो... घर वापसी के लिए एक घंटे बाद की बस हैं... मैं तुम्हे उसमे बैठा दूँगा ...तुम सब घर वापस चले जाओ। ।अब तो हम फँस चुके थे, शाम के साढ़े चार -पाँच का वक़्त था। भईया छोटू पर गुस्सा करने लगे कि- अगर तुम साथ नहीं होते तो हम तीनो पैदल ही निकल पड़ते ,छोटू रोने लगा। मैंने भईया से पूछा -क्या हम लोग इतनी दूर पैदल चल पाएंगे ? अरे, ये समझो कि- हम अपने खेल के मैदान में एक घंटे तक दौड़ लगा रहे हैं बस ...इससे ज्यादा तो हम रोज ग्राउंड में दौड़ते हैं- भईया हमारा जोश बढ़ाते हुए बोले । फिर क्या था छोटू भी सीना ताने बोल पड़ा -" मैं भी दौड़ लूँगा एक घंटे।" अब बारी गुड़िया की थी वो ठुनकने लगी- " मेरे पैर में दर्द हो जायेगा।" मैंने उसे प्यार से समझाया- " घर पहुँचेगे न तो मामी तुम्हारे पैरों में तेल मालिस कर देगी.. फिर अच्छा अच्छा खाना भी मिलेगा..अगर आज वापस लौट गए तो... फिर ये छुट्टी हम मामा के घर नहीं बिता पाएंगे ,समझी । मेरे समझाने पर गुड़िया राजी हो गई फिर क्या था... .ड्राइवर की नजरों से खुद को बचाते हुए.... हम चारो चरणबाबू का टमटम पकडे ( यानि पैदल ) और निकल पड़े अपनी मंजिल की ओर.. आगे की मुसीबत से बेखबर ....
मामा के घर से करीब 5 -6 किलोमीटर पहले ही बस खराब हो गई और पता चला अब वो बस आगे नहीं जायेगी और ना ही वहाँ से कोई दूसरी बस ही जायेगी । ड्राइवर ने हमसे कहा कि-बच्चों, तुम सब यही बैठो... घर वापसी के लिए एक घंटे बाद की बस हैं... मैं तुम्हे उसमे बैठा दूँगा ...तुम सब घर वापस चले जाओ। ।अब तो हम फँस चुके थे, शाम के साढ़े चार -पाँच का वक़्त था। भईया छोटू पर गुस्सा करने लगे कि- अगर तुम साथ नहीं होते तो हम तीनो पैदल ही निकल पड़ते ,छोटू रोने लगा। मैंने भईया से पूछा -क्या हम लोग इतनी दूर पैदल चल पाएंगे ? अरे, ये समझो कि- हम अपने खेल के मैदान में एक घंटे तक दौड़ लगा रहे हैं बस ...इससे ज्यादा तो हम रोज ग्राउंड में दौड़ते हैं- भईया हमारा जोश बढ़ाते हुए बोले । फिर क्या था छोटू भी सीना ताने बोल पड़ा -" मैं भी दौड़ लूँगा एक घंटे।" अब बारी गुड़िया की थी वो ठुनकने लगी- " मेरे पैर में दर्द हो जायेगा।" मैंने उसे प्यार से समझाया- " घर पहुँचेगे न तो मामी तुम्हारे पैरों में तेल मालिस कर देगी.. फिर अच्छा अच्छा खाना भी मिलेगा..अगर आज वापस लौट गए तो... फिर ये छुट्टी हम मामा के घर नहीं बिता पाएंगे ,समझी । मेरे समझाने पर गुड़िया राजी हो गई फिर क्या था... .ड्राइवर की नजरों से खुद को बचाते हुए.... हम चारो चरणबाबू का टमटम पकडे ( यानि पैदल ) और निकल पड़े अपनी मंजिल की ओर.. आगे की मुसीबत से बेखबर ....
अभी आधा दूर ही गए थे कि काली -काली घटाएं घिरने लगी... तेज हवाएं चलने लगी। आपको ये भी बता दे कि- इस मौसम की ये पहली घटा थी और.... इसे भी आज ही घिरना था। थोड़ा- थोड़ा डर तो लगने लगा मगर एक दूसरे की हिम्मत बढ़ाते आगे बढ़ने लगे। हम तो अपनी मस्ती में दौड़े जा रहे थे तभी किसी ने हमें आवाज़ दी -" ऐ बच्चा पार्टी कहा भागल जातर लोग " पीछे मुड़े तो एक बुढ़िया हमें बुला रही थी। हम एक दूसरे की तरफ देखने लगे ..." ये अचानक कहाँ से आ गई ....कही कोई जादूगरनी या भुत तो नहीं हैं " -भईया हमें डराते हुए बोले। छोटू गुड़िया तो डर गए लेकिन मुझे तो दुनिया के किसी चीज़ से डर लगता ही नहीं था... सो, मैं निडर होकर उसके पास जाकर बोली -"आपको क्या मतलब हम कही भी जाए " बुढ़िया प्यार से बोली - " मतलब कईसे नईखे .....चार बच्चा लोग केहू के घर के हीरा -मोती होखब लोग .....आ एतना ख़राब मौसम होता ...बोल कवना गाँव जातर लोग।" उसकी बाते सुन मुझे अच्छा लगा, मैंने उसे मामा के गाँव का नाम बता दिया। गाँव का नाम सुन वो खुश हुई फिर पूछी "-केकरा घरे जातर लोग " हमने अपने नाना जी का नाम बताया। नाना जी का नाम सुनते ही जैसे वो चौकी ,बोली -" तू लोग उनकर का लागेल " मैं थोड़ी अकड़ती हुई बोली -" उनके नाती -नतनी हैं हम।" इतना सुनते ही बुढ़िया अपनी गठरी को नीचे रखी और हम सब को बारी -बारी से पकड़कर चूमने लगी । " तू लोग मालती के बाल बच्चा हव लोग....हे , भगवान मलकिनी जिन्दा रहती त उनकर कलेजा जुडा जाईत, ई लाल लोग के देख के....तरसत चल गईल उनकर आखियाँ... ऐगो नाती देखे
खाती...आज चार चार गो लाल भगवान देहले "-बुढ़िया हमें चूमते भी जा रही थी, रो भी रही थी और साथ ही साथ बोले भी जा रही थी। मैंने पूछा -" आप मेरी नानी को जानती थी।" हाँ ,बबुनी उ देवी के त पाँच गाँव के लोग जाने ला....अउरो कईसे ना जानी.....जले सबका घर के चूल्हा ना जलत रहे उ मलकिनिया अपन चूल्हा ना जलावत रहे ....अच्छा अच्छा पहले तेज़- तेज़ चल लोग बड़ी तेज़ आंधी पानी आवता....अब त जले तहरा लोग के सही सलामत घरे ना पहुँचा देम , तले हमरा चैन ना मिली "
हम तेज़ तेज़ क़दमों से उसके साथ चलने लगे और वो हमें हमारी नानी की गुणगान सुनाती रही, हर बात पर उसकी आँखें भर जाती थी ,कैसे मेरी नानी हर एक के सुख दुःख का ख्याल रखती थी, वो इतनी निडर थी कि -सच की लड़ाई में वो सबका साथ देती थी ,गाँव के बच्चे से बूढ़े तक उनसे डरता भी था और उनका सम्मान भी करता था , गाँव की हर लड़की को , औरतो को सिलाई कढ़ाई सिखाती थी, उन्हें इतना जरूर पढ़ा देती कि वो चिट्टी लिखने ,रामायण पड़ने के काबिल हो सके ,उसने बताया कि- मेरी माँ के शादी के तीन साल बाद जब मेरे भईया माँ के गर्भ में आठ महीने के थे ,तभी वो कैंसर रोग से पीड़ित होकर, एक नाती को देखने की लालसा लिए हुए इस दुनिया को छोड़कर चली गई, कैसे उनके मरने के बाद सिर्फ उन्ही का गाँव नहीं बल्कि आस पास के कितने गाँव के लोग उनके लिए रोये थे , नानी के मरने के बाद नाना जी मेरे सन्त से हो गए थे और मेरी बड़ी मामी वहाँ रहती नही थी सो, सबने वो आँगन छोड़ दिया था।वो मेरी छोटी मामी की तारीफ भी करने लगी कि - उनके आने के बाद वो घर फिर से बसने लगा हैं। छोटे मामा के शादी का दो साल ही हुआ था ( और वो लोग गाँव में ही रहते थे ) हमें भी छोटी मामी से ही लगाव था, इसीलिए तो उनके पास भागे जा रहे थे।
अपनी नानी की जीवन गाथा सुन, हमारी भी आँखे भर आई थी। वो बुढ़िया हमारे साथ गाँव के सीमा तक आई, जब हमने उसे आश्वस्त किया कि- हम यहाँ से सुरक्षित चले जायेगे आप जाए, बारिस बहुत तेज़ होने वाली हैं, आपको भी तो अपने घर पहुंचना हैं ,तब वो आगे गई।हमने भी उन्हें नानी कहकर उनके पैर छुए और उन्होंने हमें गले से लगा लिया और ढेर सारी दुआएं दी।
उस दिन छोटी उम्र में ही मुझे ये सबक मिल गया था कि -इंसान तो मर जाता हैं पीछे रह जाता हैं उसका व्यक्तित्व जो उसे पूजनीय या निंदनीय बनाता हैं। खैर ,हम जैसे ही गाँव में प्रवेश किए तेज़ बौछार के साथ बारिस शुरू हो गई ,गाँव में घुसते ही कुछ लोगो ने हमें पहचान लिया सब थोड़ी हैरत और ख़ुशी से हमें अपने कन्धे पर बिठा लिये ,मुझे तो उठाकर ये कहते हुए सब नाचने लगे कि -"रानी आई पानी लाई " सब की आँखे बरसात की बून्द के लिए तरस रही थी। क्योँकि धान के रोपनी का समय बीतता जा रहा था और खेत सूखे पड़े थे। सब हमें कन्धे पर उठाये ही घर तक पहुँचे, हमें देखकर ख़ुशी और आश्चर्य से मामा के तो होश ही उड़ गए। लेकिन हमने उन्हें नहीं बताया कि- हम यहाँ तक कैसे आए हैं और गाँव वाले तो बारिस के ख़ुशी में मग्न थे तो वो तो हमें लेकर नाच ही रहे थे। अगले दिन मामा ने पापा को खबर भिजवा दिया कि -" बच्चे पहुँच गए "अब बच्चे घर तक कैसे पहुँचे थे ये राज तो 7 दिन बाद खुला, जब वो बुढ़िया नानी हमसब से मिलने घर आई। तब तक बात पुरानी हो गई थी, सब बस किस्से सुनकर हँस रहे थे। गाँव वालो ने तब तक हमें घर लौटने नहीं दिया जब तक उनकी रोपनी खत्म नहीं हुई, क्योंकि जब तक हम थे बारिस खूब हुई । हमें तो सबने इंद्रदेव ही समझ लिया था। सच ,कितने भोले और निश्छल होते हैं गाँव के लोग।
तो ये थी, हमारी पहली रोचक सफर की गाथा .....फिर मिलते हैं अगले सफर में ....
कितना कुछ छुपा है इस संस्मरण में कामिनी जी।
जवाब देंहटाएंकितने ही सार्थक संदेश, मस्ती,लाड़-दुलार,अपनापन,अपनों का खूबसूरत साथ।
बेहद सुंदर रोचक संस्मरण है।
आपको नये ब्लॉग की बधाई कामिनी जी।
शुभकामनाएँ खूब सारा लिखिए।
हटाएंदिल से धन्यवाद श्वेता जी,आपने तो इस संस्मरण में छुपे मेरे सारे भाव पढ़ लिए ,बहुत बहुत आभार आपका ,आप सब के साथ इस लेखन सफर की शुरुआत की थी ,आप सभी मेरे इस सफर के भी साथी बनेगे तो सफर जरूर सुहाना होगा। सादर नमन आपको
सरस और रोचक!
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद विश्वमोहन जी ,आपकी प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ ,सादर नमन आपको
हटाएंवाह!कामिनी जी ,बहुत ही रोचक संस्मरण है ।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद शुभा जी ,आप को मेरी यात्रा की कहानी अच्छी लगी,मेरा लेखन सार्थक हुआ ,सादर नमन आपको
हटाएंवाह ! बहुत रोचक और रोमांचक संस्मरण
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद अनीता जी ,आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए दिल से आभार ,सादर नमन आपको
हटाएंआदरणीया कामिनी जी, आपके इस नए ब्लॉग के सफर पर हम भी संग हैं । जीवन के सुक्ष्म क्षणों को आपकी कलम की नोंक से देखने का आनन्द ही कुछ और है। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीया।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद प्रुरुषोत्तम जी ,मेरी यात्रा के सहयात्री बनने के लिए दिल से आभार ,सादर नमन आपको
हटाएंआगे भी आपके संस्मरण के लिये इन्तजार करते हुए।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ....💐💐
दिल से धन्यवाद आपका जी
हटाएंस्थानीय भाषा के प्रयोग ने संस्मरण को और भी अधिक सरसता
जवाब देंहटाएंप्रदान की है । बेहतरीन और लाजवाब जीवन अनुभव ।
सहृदय धन्यवाद मीना जी ,बस कोशिश यही हैं कि - यात्रा के सभी अनुभवों को ज्यो का त्यों रख सकूं ,सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार आपका ,सादर नमन
हटाएंरोचक और भाषा की मिठास लिए ...
जवाब देंहटाएंअच्छा संस्मरण है ...
सहृदय धन्यवाद दिगंबर जी , मेरे नए सफर पर स्वागत हैं आपका ,सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार ,सादर नमन
हटाएंNice Post Good Informatio ( Chek Out )
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