हमारी आदत होती है कला से कम और कलाकारों से ज्यादा जुड़नें की,खेल को कम खिलाड़ियों को ज्यादा महत्व देने की,भगवान की भक्ति कम मगर ढोंगी बाबाओं की भक्ति ज्यादा करने की। पता नहीं ये कैसी इंसानी प्रकृति है कि-हम किसी के इतने मुरीद हो जाते हैं कि आँखे मूँदकर उन्हें सर पर बिठा लेते हैं। कभी-कभी तो जान लेने और देने तक को उतारू हो जाते हैं और हम जिन्हें सर-आँखों पर बिठाकर अंधी भक्ति कर रहें होते हैं उन्हें ना तो हमारी कदर होती है ना परवाह,वो तो हम से पूरी तरह बेखबर रहते हैं।
चाहे वो कला की दुनिया के चमकते सितारे हो या धरती पर भगवान बन बैठे बाबा लोग,इन सभी के कारण आज जिस तरह से सारे कद्रदानों के दिल टूट रहें हैं,ये दृश्य एक बार सोचने पर मजबूर कर देता है कि -"क्या हम सचमुच विवेकशील है।" हम क्यूँ नहीं समझतें कि ये सब भी हमारे जैसे ही हाड-मांस के पुतले इंसान ही है भगवान नहीं। उन के भीतर भी आम इंसानों की तरह ही छल-प्रपंच,ईर्ष्या-द्वेष,लालच-क्रोध,आशा-निराशा जैसे ही भाव है। वो हम से अलग नहीं है और ना ही वो हीरो और भगवान कहलाने के लायक है।
आज देश का जो माहौल बना है ये देखकर मुझे अपनी वर्षो पुरानी एक यात्रा-वृतांत याद आ गई। बात उन दिनों की है जब मैं 12 वी कक्षा में थी। मैं अपने पापा,दादा जी और दो बुआ (पापा की बहनें)के साथ ट्रेन में सफर कर रही थी। उन दिनों ट्रेन के सफर में एक वाद-विवाद का माहौल बन ही जाता था। कभी तो वो विवाद शांतिपूर्ण और एक स्वच्छ चर्चा-परिचर्चा भर होकर रह जाती और कभी तो युद्ध सा माहौल बन जाता "हम किसी से कम नहीं" वाली सोच लगभग हर किसी की होती थी (और है भी)। उस सफर के दौरान भी एक बहस छिड़ गई,विषय था "फ़िल्मी सितारे" मुख्य किरदार थे गुजरे जमाने के सुपरस्टार दिलीप कुमार जी और उस वक़्त के सुपर स्टार अमिताभ वच्चन जी। बात शुरू तो हुई उनकी उन्दा अदाकारी के चर्चे से,जिसमे मेरे पापा भी शामिल थे (हमारा खानदान भी पूरा फिल्मची था) हम लड़कियाँ तो उस बहस में शामिल नहीं थी क्योँकि उस ज़माने में लडकियाँ चाहे कितनी भी पढ़ी-लिखी और मॉर्डन हो फिर भी हर जगह उन्हें बोलने की इजाजत नहीं थी (नहीं तो शायद मैं भी उस बहस में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही होती,वैसे भी फिल्मों के बारे में मेरा जेनरल-नॉलेज बड़ा तगड़ा था हाँ,राजनितिक बहस होती तो शायद चुप भी रह जाती)
हाँ,तो शुरूआती बहस तो मजेदार थी कोई दिलीप जी बनाम "ट्रेजडी किंग" के इमोशनल सीन्स की खूबियाँ गिना रहा था तो कोई अमिताभ जी के "एंग्री यंगमैन" के सीन पर ताली दे रहा था मगर, धीर-धीरे दिलीप जी और अमिताभ जी की सच्ची और अंधी भक्ति करने वाले पुजारियों की भावनाओं में उबाल आने लगा और चर्चा तर्क-वितर्क में बदलते देर ना लगी।तर्क-वितर्क पर भी बात थम जाती तो गनीमत थी मगर, देखते-ही-देखते बात लड़ाई-झगडे तक ही नहीं पहुँची बल्कि हाथापाई भी शुरू हो गई। जब तक बात स्वस्थ चर्चा तक सिमित थी तब तक मेरे दादा जी और पापा भी इस चर्चा में शामिल रहे मगर जैसे ही वो बहस का रूप लेने लगी उन्होंने उस बहस को रोकना चाहा मगर वो दीवाने किसी के रोके कहाँ रुकने वाले थे। फिर पापा और उनकी तरह के और बुजुर्ग उस चर्चा से अलग हो गए। मगर जब बात हाथापाई तक पहुँची तो सबने मिलकर बा-मुस्क्त उन्हें रोका। लेकिन जैसे ही ट्रेन एक जंक्शन पर रुकी वो सारे बहसबाज उस स्टेशन पर उतर गए फिर क्या था, ऐसा फाइटिंग सीन देखने को मिला कि पूछे मत,फिल्मों में भी ऐसा सीन कभी नही फिल्माया गया होगा,किसी का सर फटा,किसी की टांग टूटी। खैर, फिल्मो की तरह पुलिसवालों ने आने में देर नहीं की,वो समय पर आ गए और ये कहते हुए उन दीवानों को ले गए कि -"अब बुला लो अपने-अपने सुपर स्टारों को जमानत के लिए"
वैसी लड़ाई फिल्मों से बाहर देखकर उस वक़्त तो हम लड़कियों की जान सूख गई थी मगर घर पहुँचकर वो सारी बातें याद कर-करके हम खूब हँस रहें थे। उस दिन दादा जी ने हम सब को समझते हुए कहा था - "कला से जुड़ों कलाकारों से नहीं,शिक्षा से जुड़ों शिक्षकों से नहीं,ज्ञान से जुड़ों ज्ञान बाँटने वाले ज्ञानियों से नहीं, आस्था और भक्ति से जुड़ों इस पथ को प्रदर्शित करने वाले पथप्रदर्शकों से नहीं। इंसान को विवेकशील रहना चाहिए,किसी को पसंद करना या प्यार करना,किसी के ज्ञान और भक्ति का सम्मान कर उसकी राह को अपनाना तो अच्छी बात है गलत तो तब होता है जब हम अँधा प्यार या अंधी भक्ति करने लगते हैं।कला को छोड़ कलाकारों से जुड़ जाते हैं,गुरु के दिखाए ज्ञान और भक्ति की मार्ग पर चलकर अपना जीवन सफल बनाने के वजाय गुरु के घर में जाकर बैठ जाते हैं और बिना सोचे-विचारे उन्हें भगवान से भी बड़ा बना देते हैं, हम क्यूँ नहीं समझते कि ये भी इंसान ही है इनमे भी खामियां हो सकती है, किसी के गुणों का सम्मान कर उससे सीखो,समझों,अपनाओ और उन गुणों की पूजा करो किसी व्यक्ति विशेष को मत पूजों।
लेकिन हमने तो बिना सोचे समझे पति तक को परमेश्वर बना डाला। सोच-समझकर किसी को भगवान बनाना चाहिए क्योँकि भगवान से कभी गलतियाँ नहीं होती और इंसान गलतियों का पिटारा है इसलिए इंसान को इंसान ही रहने देना चाहिए। "
दादी जी की कही एक-एक बात को हमनें गाँठ में बाँध लिया और ना ही कभी किसी से अँधा प्यार किया और ना ही किसी को अंधी भक्ति और सम्मान दिया ।
कला से जुड़ों कलाकारों से नहीं,शिक्षा से जुड़ों शिक्षकों से नहीं,ज्ञान से जुड़ों ज्ञान बाँटने वाले ज्ञानियों से नहीं, आस्था और भक्ति से जुड़ों इस पथ को प्रदर्शित करने वाले पथप्रदर्शकों से नहीं
जवाब देंहटाएंबहुत ही महत्वपूर्ण बात है ये अन्धा प्यार अन्धी भक्ति के क ई घिनौने उदाहरण अब तक सामने आ चुके हैं पर फिर भी ऐसे अन्धभक्तों की संख्या में कमी नहीं आयी है
बहुत ही सार्थक वाकये के साथ सुन्दर शिक्षाप्रद लेख।
सहृदय धन्यवाद सुधा जी,सादर नमन आपको
हटाएंदुःख और आश्चर्य तो तब होता है जब इनकी असलियत सामने आने पर भी इनके ''फैनों'' के स्विच ऑफ नहीं होते !!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद सर,पूर्णतः सहमत हूँ आपकी बातों से,सादर नमन आपको
हटाएंअनमोल सीख ।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद अमृता जी,सादर नमन आपको
हटाएंसही बात। हम व्यक्तित्व को छोड़ व्यक्ति-पूजा में लग जाते हैं।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद विश्वमोहन जी ,सादर नमन आपको
हटाएंसटीक चिन्तन ..बड़ों के अनुभव जिन्दगी में बहुत कुछ सिखाते हैं । सीखप्रद लेख।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद मीना जी ,सादर नमन आपको
हटाएंअरे वाह! बिल्कुल सही और सत्य लिखा है आपने। ये बंसो और ट्रेनों ये सब होते हुए मैंने खुद अपने आंखो से देखा है। खासकर युवाओं को पढ़ने लिखने की उम्र ये राजनीतिक दल या कलाकार , खिलाड़ियों आदि से भावनात्मक रूप से जुड़ जाते है और बिना तथ्य के जज्बाती होकर एक दूसरे को गरियाने लग जाते है होता कुछ नहीं है पूरा का पूरा समाज बीमार हो जाता है।
जवाब देंहटाएंसटीक एवं सार्थक लेख..!
सहृदय धन्यवाद शिवम जी ,मेरे ब्लॉग पर स्वागत है आपका, सादर नमन
हटाएंरोचक एवं प्रेरणास्पद लेख 🙏
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद शारद जी ,सादर नमन आपको
हटाएंकिसी के गुणों का सम्मान कर उससे सीखो,समझों,अपनाओ और उन गुणों की पूजा करो किसी व्यक्ति विशेष को मत पूजों।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही बात कामिनी दी।
सहृदय धन्यवाद ज्योति जी,सादर नमन आपको
हटाएंसहृदय धन्यवाद मीना जी,सादर नमन आपको
जवाब देंहटाएंआप सभी का दिल से शुक्रिया,प्रतिउत्तर देने में देरी के लिए क्षमा चाहती हूँ,इन दिनों घरेलु व्यस्तता बहुत ज्यादा बढ़ जाने से ब्लॉग को वक़्त नहीं दे पा रही हूँ ,आप सभी ने मेरा लेख पढ़ा मेरा लिखना सार्थक हुआ, सादर नमन आप सभी को
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सर,सादर नमन आपको
जवाब देंहटाएंअंधभक्त और तलुए चाटने वाले बहुत से लोग बकुछ जानते हुए और अपनी आँखों से देखते हुए भी आंख के अंधे और कान से बहरे बने रहते हैं जिंदगी भर, ऐसे ही लोगों से कईयों की दुकानदारी चलती रहती है बदस्तूर
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद कविता जी,बिलकुल सही कहा आपने
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना सखी
जवाब देंहटाएंनववर्ष आपके और आपके परिवार के लिए मंगलमय और सुख-समृद्धि दायक हो 🙏
सहृदय धन्यवाद सखी
हटाएंसार्थक लेखन
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद अनीता जी,सादर नमन
हटाएंअनमोल सीख, ववर्ष आपके और आपके परिवार के लिए मंगलमय और सुख-समृद्धि दायक हो
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद मधुमिता जी,सादर नमन
हटाएंखैर, फिल्मो की तरह पुलिसवालों ने आने में देर नहीं की,वो समय पर आ गए और ये कहते हुए उन दीवानों को ले गए कि -"अब बुला लो अपने-अपने सुपर स्टारों को जमानत के लिए"
जवाब देंहटाएंबड़ा मजेदार लेख और साथ ही सही संदेश भी।
सहृदय धन्यवाद मीना जी,सादर नमन
हटाएंआपका लेख सार्थक है । मेरे विचार भी आप जैसे ही हैं ।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद जितेंद्र जी,सादर नमन आपको
हटाएंNice Post Good Informatio ( Chek Out )
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